श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 65-66
 
 
श्लोक  7.10.65-66 
 
 
अथासौ शक्तिभि: स्वाभि: शम्भो: प्राधानिकं व्यधात् ।
धर्मज्ञानविरक्त्यृद्धितपोविद्याक्रियादिभि: ॥ ६५ ॥
रथं सूतं ध्वजं वाहान्धनुर्वर्मशरादि यत् ।
सन्नद्धो रथमास्थाय शरं धनुरुपाददे ॥ ६६ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने आगे कहा - तत्पश्चात् कृष्ण ने अपनी निजी शक्ति से, जो धर्म, ज्ञान, त्याग, ऐश्वर्य, तपस्या, विद्या एवं कर्म से युक्त थी, शिवजी को सभी प्रकार की साज-सामग्री से- जैसे रथ, सारथी, ध्वजा, घोड़े, हाथी, धनुष, ढाल एवं बाण से संयुक्त कर दिया | इस प्रकार से संयुक्त होकर शिव जी अपने धनुष-बाण द्वारा असुरों से युद्ध करने के लिए रथ पर बैठ गए |
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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