श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 64
 
 
श्लोक  7.10.64 
 
 
देवोऽसुरो नरोऽन्यो वा नेश्वरोऽस्तीह कश्चन ।
आत्मनोऽन्यस्य वा दिष्टं दैवेनापोहितुं द्वयो: ॥ ६४ ॥
 
अनुवाद
 
  मय दानव बोले: जो तक़दीर स्वामी ने अपनी, पराई या दोनों के लिए तय कर दी हो उसे ना तो कोई मिटा सकता है और ना ही उसे कोई बदल सकता है। ऐसा कोई भी नहीं है, चाहे वह देवता हो, दानव हो या कोई और, जो भगवान् की इच्छा के विरुद्ध जा सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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