तेऽसुरा ह्यपि पश्यन्तो न न्यषेधन्विमोहिता: ।
तद्विज्ञाय महायोगी रसपालानिदं जगौ ।
स्मयन्विशोक: शोकार्तान्स्मरन्दैवगतिं च ताम् ॥ ६३ ॥
अनुवाद
असुर बछड़े और गाय को देख सकते थे, लेकिन भगवान द्वारा उत्पन्न मोह शक्ति के कारण वे उन्हें मना नहीं कर सके। महायोगी मय दानव को पता चल गया कि बछड़ा और गाय अमृत पी रहे हैं और वह यह समझ गया कि यह अदृश्य दैवी शक्ति के कारण हो रहा है। अतः वह पश्चात्ताप करते हुए असुरों से बोला।