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अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद
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श्लोक 61
श्लोक
7.10.61
विलोक्य भग्नसङ्कल्पं विमनस्कं वृषध्वजम् ।
तदायं भगवान्विष्णुस्तत्रोपायमकल्पयत् ॥ ६१ ॥
अनुवाद
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महादेवजी को अत्यंत दुःखी और निराश देखकर भगवान विष्णु ने मनन किया कि मय दानव के कारण उत्पन्न इस विपत्ति को कैसे रोका जाए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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