श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 43-44
 
 
श्लोक  7.10.43-44 
 
 
प्रह्रादस्यानुचरितं महाभागवतस्य च ।
भक्तिर्ज्ञानं विरक्तिश्च याथार्थ्यं चास्य वै हरे: ॥ ४३ ॥
सर्गस्थित्यप्ययेशस्य गुणकर्मानुवर्णनम् ।
परावरेषां स्थानानां कालेन व्यत्ययो महान् ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  यह कथा महान भक्त प्रह्लाद महाराज के गुणों, उनकी प्रबल भक्ति, उनके संपूर्ण ज्ञान और भौतिक अशुद्धियों से पूर्ण वैराग्य को दर्शाती है। यह सृजन, पालन और विनाश के मूल कारण भगवान का भी वर्णन करती है। प्रह्लाद महाराज ने अपनी प्रार्थनाओं में भगवान के दिव्य गुणों का वर्णन किया है और यह भी बताया है कि कैसे भगवान के एक निर्देश मात्र से देवताओं और राक्षसों के विभिन्न निवास, चाहे वे कितने भी भौतिक रूप से समृद्ध क्यों न हों, नष्ट हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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