एवं च पार्षदौ विष्णो: पुत्रत्वं प्रापितौ दिते: ।
हृदि स्थितेन हरिणा वैरभावेन तौ हतौ ॥ ३५ ॥
अनुवाद
इस प्रकार भगवान विष्णु के वे दो साथी, जो दिति के पुत्र, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप बने थे, मार दिए गए। वे मृत्युलोक में भ्रमवश यह सोचने लगे थे कि परमात्मा, जो हर किसी के दिल में निवास करते हैं, उनके शत्रु हैं।