श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  7.10.3 
 
 
भृत्यलक्षणजिज्ञासुर्भक्तं कामेष्वचोदयत् ।
भवान् संसारबीजेषु हृदयग्रन्थिषु प्रभो ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे पूजनीय प्रभु, चूँकि प्रत्येक हृदय में भौतिक अस्तित्व के मूल कारण कामुक इच्छाओं का बीज निहित होता है, इसलिए आपने मुझे इस भौतिक जगत में एक शुद्ध भक्त के लक्षण प्रकट करने के लिए भेजा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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