योऽसौ लब्धवरो मत्तो न वध्यो मम सृष्टिभि: ।
तपोयोगबलोन्नद्ध: समस्तनिगमानहन् ॥ २७ ॥
अनुवाद
इस असुर हिरण्यकशिपु को मुझसे वर मिला था कि उसे मेरी सृष्टि में कोई भी जीव नहीं मार पाएगा। इस आश्वासन और तपस्या के द्वारा मिली शक्ति से वह अत्यधिक घमंडी बन गया और सभी वैदिक नियमों को तोड़ने लगा।