श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  7.10.13 
 
 
भोगेन पुण्यं कुशलेन पापं
कलेवरं कालजवेन हित्वा ।
कीर्तिं विशुद्धां सुरलोकगीतां
विताय मामेष्यसि मुक्तबन्ध: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रिय प्रह्लाद, इस भौतिक जगत में रहकर तुम सुख का अनुभव करते हुए अपने पुण्य कर्मों के फल समाप्त कर दोगे और पुण्य कर्मों से पापकर्मों को समाप्त कर दोगे। काल के कारण तुम्हें शरीर त्यागना होगा, परन्तु तुम्हारे कार्यों का यश ऊपरी ग्रहों तक फैलेगा और सभी बंधनों से मुक्त होकर तुम भगवान के पास लौट सकोगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.