कथा मदीया जुषमाण: प्रियास्त्व-
मावेश्य मामात्मनि सन्तमेकम् ।
सर्वेषु भूतेष्वधियज्ञमीशं
यजस्व योगेन च कर्म हिन्वन् ॥ १२ ॥
अनुवाद
भौतिक जगत में रहने पर भी तुम्हें मेरे उपदेश तथा वचन निरन्तर सुनने चाहिए और मेरे ही विचारों में लीन रहना चाहिए, क्योंकि मैं सभी के हृदय में परमात्मा रूप में विराजमान हूँ। अतः, सकाम कर्मों का त्याग कर मेरी पूजा करो।