श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  7.1.44 
 
 
ततस्तौ राक्षसौ जातौ केशिन्यां विश्रव:सुतौ ।
रावण: कुम्भकर्णश्च सर्वलोकोपतापनौ ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  तदनंतर भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय का जन्म क्रमशः रावण और कुंभकर्ण के रूप में विश्रवा और केशिनी के गर्भ से हुआ। वे ब्रह्मांड के सभी लोगों के लिए अत्यधिक कष्टदायक थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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