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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 1: समदर्शी भगवान्
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श्लोक 40
श्लोक
7.1.40
जज्ञाते तौ दिते: पुत्रौ दैत्यदानववन्दितौ ।
हिरण्यकशिपुर्ज्येष्ठो हिरण्याक्षोऽनुजस्तत: ॥ ४० ॥
अनुवाद
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भगवान के वे दोनों अनुचर, जय और विजय, बाद में दिति के दो पुत्रों के रूप में इस भौतिक जगत में अवतरित हुए। इनमें हिरण्यकशिपु बड़ा और हिरण्याक्ष छोटा था। समस्त दैत्यों और दानवों (राक्षस प्रजातियों) द्वारा दोनों का अत्यधिक सम्मान किया जाता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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