श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  7.1.4-5 
 
 
श्रीऋषिरुवाच
साधु पृष्टं महाराज हरेश्चरितमद्भ‍ुतम् ।
यद् भागवतमाहात्म्यं भगवद्भ‍क्तिवर्धनम् ॥ ४ ॥
गीयते परमं पुण्यमृषिभिर्नारदादिभि: ।
नत्वा कृष्णाय मुनये कथयिष्ये हरे: कथाम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  महामुनि शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन्, आपने मुझसे बड़ा ही श्रेष्ठ प्रश्न पूछा है। भगवान के कार्यकलापों से संबंधित कथाएँ, जिनमें उनके भक्तों का यश भी वर्णित है, भक्तों को अत्यंत प्रिय होती हैं। ऐसी अद्भुत कथाएँ सदैव भौतिक जीवन के कष्टों का निवारण करती हैं। इसलिए नारद जैसे मुनि हमेशा श्रीमद्भागवत के विषय में उपदेश देते रहते हैं, क्योंकि इससे मनुष्य को भगवान के अद्भुत कार्यकलापों के श्रवण और कीर्तन की सुविधा प्राप्त होती है। अब मैं श्रील व्यासदेव को नमन करके भगवान हरि के कार्यकलापों से संबंधित कथाओं का वर्णन शुरू करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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