श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  7.1.34 
 
 
श्रीयुधिष्ठिर उवाच
कीद‍ृश: कस्य वा शापो हरिदासाभिमर्शन: ।
अश्रद्धेय इवाभाति हरेरेकान्तिनां भव: ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज युधिष्ठिर ने पूछा: किस प्रकर के महान् अभिशाप ने मुक्त विष्णु-भक्तों को भी प्रभावित किया और किस प्रकार का व्यक्ति भगवान के भी पार्षदों को श्राप दे सका? भगवान के दृढ़ भक्तों के लिए इस भौतिक जगत में फिर से आना असम्भव है। मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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