श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.1.30 
 
 
कामाद् द्वेषाद्भ‍यात्स्‍नेहाद्यथा भक्त्येश्वरे मन: ।
आवेश्य तदघं हित्वा बहवस्तद्गतिं गता: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  कई-कई व्यक्तियों ने मात्र कृष्ण के बारे में बहुत ध्यान लगाकर चिंतन करने और पापकर्मों को त्याग कर मुक्ति प्राप्त की है। यह ध्यान कामुक इच्छाओं, वैर भावनाओं, भय, स्नेह या भक्ति भाव के कारण हो सकता है। अब मैं यह समझाऊँगा कि मनुष्य किस प्रकार से अपने मन को भगवान में एकाग्र करके कृष्ण की कृपा प्राप्त करता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.