श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  7.1.24 
 
 
हिंसा तदभिमानेन दण्डपारुष्ययोर्यथा ।
वैषम्यमिह भूतानां ममाहमिति पार्थिव ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा, शरीर से उपजी बुद्धि के कारण जीव अपने शरीर को ही आत्मा मान लेता है, और शरीर से जुड़ी हर चीज को अपना समझता है। क्योंकि उसे जीवन की यह गलत समझ है, इसलिए उसे प्रशंसा और निंदा जैसे द्वंद्वों का सामना करना पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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