श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  7.1.23 
 
 
श्रीनारद उवाच
निन्दनस्तवसत्कारन्यक्कारार्थं कलेवरम् ।
प्रधानपरयो राजन्नविवेकेन कल्पितम् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  महर्षि नारदजी ने कहा: हे राजन, निंदा और स्तुति, अपमान और सम्मान का अनुभव अज्ञान के कारण ही होता है। जीवात्मा के शरीर को भगवान ने अपनी बाहरी शक्ति के द्वारा इस संसार में कष्ट भोगने के लिए बनाया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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