न ह्यस्यार्थ: सुरगणै: साक्षान्नि:श्रेयसात्मन: ।
नैवासुरेभ्यो विद्वेषो नोद्वेगश्चागुणस्य हि ॥ २ ॥
अनुवाद
भगवान् विष्णु स्वयं भगवान् हैं और सभी आनंद के भंडार हैं। तो उन्हें देवताओं के पक्ष में जाने से क्या मिलेगा? इस कदम से उनकी क्या इच्छा पूरी होगी? भगवान् दिव्य हैं, तो उन्हें असुरों से डरने की क्या ज़रूरत है, और उनसे ईर्ष्या क्यों करेंगे?