श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 1: समदर्शी भगवान्  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.1.16 
 
 
श्रीयुधिष्ठिर उवाच
अहो अत्यद्भ‍ुतं ह्येतद्दुर्लभैकान्तिनामपि ।
वासुदेवे परे तत्त्वे प्राप्तिश्चैद्यस्य विद्विष: ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज युधिष्ठिर ने पूछा: यह अत्यंत आश्चर्य की बात है कि राक्षस शिशुपाल अत्यंत ईर्ष्यालु होते हुए भी भगवान के शरीर में विलीन हो गया। यह सायुज्य-मुक्ति बड़े-बड़े अध्यात्मवादियों के लिए भी दुर्लभ है, तो फिर भगवान के शत्रु को यह कैसे प्राप्त हो गई?
 
 
 
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