श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 9: वृत्रासुर राक्षस का आविर्भाव  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  6.9.42 
 
 
अथ भगवंस्तवास्माभिरखिलजगदुत्पत्तिस्थितिलयनिमित्तायमानदिव्यमायाविनोदस्य सकलजीवनिकायानामन्तर्हृदयेषु बहिरपि च ब्रह्मप्रत्यगात्मस्वरूपेण प्रधानरूपेण च यथादेशकालदेहावस्थानविशेषं तदुपादानोपलम्भकतयानुभवत: सर्वप्रत्ययसाक्षिण आकाशशरीरस्य साक्षात्परब्रह्मण: परमात्मन: कियानिह वार्थविशेषो विज्ञापनीय: स्याद्विस्फुलिङ्गादिभिरिव हिरण्यरेतस: ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, जिस प्रकार अग्नि की छोटी-छोटी चिंगारियाँ पूर्ण अग्नि का कार्य कर ही नहीं सकती, उसी प्रकार हम आपकी चिंगारियों के समान हैं और अपने जीवन की आवश्यकताओं के बारे में आपको बताने में असमर्थ हैं। आप पूर्ण ब्रह्म हैं, तो फिर हमें आपको क्या बताने की आवश्यकता है? आप सब कुछ जानते हैं क्योंकि आप दृश्य जगत के आदि कारण, पालक और सम्पूर्ण सृष्टि के संहारक हैं। आप अपनी दिव्य और भौतिक शक्तियों के साथ लीला करते रहते हैं क्योंकि आप ही इन समस्त शक्तियों के नियंत्रक हैं। आप सभी जीवों के भीतर, दृश्य सृष्टि में और उससे परे भी रहते हैं। आप अंत:करणों में परब्रह्म के रूप में और बाह्यत: भौतिक सृष्टि के अवयवों के रूप में स्थित हैं। अतः यद्यपि आप विभिन्न अवस्थाओं, विभिन्न कालों और स्थानों और विभिन्न देहों में प्रकट होते रहते हैं, तो भी हे भगवान, आप ही समस्त कारणों के आदि कारण हैं। वास्तव में आप ही मूल तत्त्व हैं। आप समस्त गतिविधियों के साक्षी हैं, किंतु आकाश के समान महान होने के कारण किसी के द्वारा स्पृश्य नहीं हैं। आप परब्रह्म और परमात्मा के रूप में प्रत्येक वस्तु के साक्षी हैं। हे भगवान, आपसे कुछ भी छिपा नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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