गगनान्न्यपतत् सद्य: सविमानो ह्यवाक् शिरा: ।
स वालिखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मित: ।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ॥ ४० ॥
अनुवाद
अचानक चित्ररथ अपने विमान से सिर के बल नीचे गिरने को बाध्य हुए। इस अचंभाकारी घटना के बाद वालिखिल्य ऋषियों ने उन्हें आदेश दिया कि पास ही में बह रही सरस्वती नदी में उस ब्राह्मण की अस्थियाँ प्रवाहित कर दें। उन्हें ऐसा ही करना पड़ा और अपने घर लौटने से पहले नदी में स्नान करना पड़ा।