श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 8: नारायण-कवच  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  6.8.37 
 
 
न कुतश्चिद्भ‍यं तस्य विद्यां धारयतो भवेत् ।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याध्यादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  यह नारायण-कवच नामक स्तोत्र नारायण के दिव्यरूप से जुड़े हुए सूक्ष्म ज्ञान से भरा हुआ है। जो व्यक्ति इसका उपयोग करता है, वह चाहे सरकार हो, लुटेरे हों, दुष्ट दानव हों या किसी भी तरह की बीमारी हो, वह उसे कभी परेशान नहीं कर पाते और न ही उसे ख़तरे में डाल पाते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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