एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा ।
पदा वा संस्पृशेत् सद्य: साध्वसात् स विमुच्यते ॥ ३६ ॥
अनुवाद
यदि कोई इस कवच को धारण करता है तो वह जिस भी व्यक्ति को अपनी आँखों से देखता है या अपने पैरों से स्पर्श करता है, वह तुरंत ही उपर्युक्त सभी संकटों से मुक्त हो जाता है।