श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 8: नारायण-कवच  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.8.25 
 
 
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृ-
पिशाचविप्रग्रहघोरद‍ृष्टीन् ।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो
भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे शंखश्रेष्ठ पांचजन्य! तुम भगवान श्रीकृष्ण की श्वास से सदैव पूरित हो, इसलिए तुम राक्षसों, प्रमथ भूतों, प्रेतों, माताओं, पिशाचों और भयंकर नेत्रों वाले ब्रह्म राक्षसों जैसे शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न करने वाली एक भयावह ध्वनि उत्पन्न करते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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