श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 8: नारायण-कवच  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  6.8.24 
 
 
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे
निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।
कुष्माण्डवैनायकयक्षरक्षो-
भूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे श्री भगवान के हाथ में रहने वाली गदे! तुम वज्र के समान शक्तिशाली अग्नि की चिंगारियाँ उत्पन्न करो, तुम भगवान को अति प्रिय हो। मैं भी उनका दास हूं, अतः कुष्मांड, वैनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और ग्रहों के समूहों को कुचलने में मेरी सहायता करो। कृपया उन्हें चूर-चूर कर दो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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