श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 7: इन्द्र द्वारा गुरु बृहस्पति का अपमान  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  6.7.28 
 
 
पुत्राणां हि परो धर्म: पितृशुश्रूषणं सताम् ।
अपि पुत्रवतां ब्रह्मन् किमुत ब्रह्मचारिणाम् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ब्राह्मण! एक पुत्र का परम धर्म है कि वह अपने माता-पिता की सेवा करे, चाहे उसके खुद के बच्चे हों या न हों। और तो और, जो पुत्र ब्रह्मचारी हो, उसके लिए तो माता-पिता की सेवा करना और भी आवश्यक है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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