श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 5: प्रजापति दक्ष द्वारा नारद मुनि को शाप  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  6.5.33 
 
 
सध्रीचीनं प्रतीचीनं परस्यानुपथं गता: ।
नाद्यापि ते निवर्तन्ते पश्चिमा यामिनीरिव ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  सवलाश्वों ने उसी धर्ममय मार्ग का अनुसरण किया जो भक्तिभाव से भरी जीवनशैली अपनाने से मिलता है या भगवान् की दया से मिलता है। वे उस रात की तरह पश्चिम दिशा में चले गए हैं जो आज तक लौटकर नहीं आई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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