वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य
»
अध्याय 4: प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान् से की गई हंसगुह्य प्रार्थनाएँ
»
श्लोक 47
श्लोक
6.4.47
अहमेवासमेवाग्रे नान्यत् किञ्चान्तरं बहि: ।
संज्ञानमात्रमव्यक्तं प्रसुप्तमिव विश्वत: ॥ ४७ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
इस विराट ब्रह्मांड के प्रकट होने से पहले मैं अपने विशिष्ट आध्यात्मिक गुणों के साथ अकेला था। उस समय चेतना अप्रकट थी, ठीक वैसे ही जैसे नींद के दौरान किसी व्यक्ति की चेतना छिपी रहती है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.