श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 4: प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान् से की गई हंसगुह्य प्रार्थनाएँ  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  6.4.18 
 
 
यथा ससर्ज भूतानि दक्षो दुहितृवत्सल: ।
रेतसा मनसा चैव तन्ममावहित: श‍ृणु ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: कृपया मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनें कि कैसे प्रजापति दक्ष, जो अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते थे, ने अपने वीर्य और मन से विभिन्न प्रकार के जीवों को बनाया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.