श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 3: यमराज द्वारा अपने दूतों को आदेश  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  6.3.14-15 
 
 
अहं महेन्द्रो निऋर्ति: प्रचेता:
सोमोऽग्निरीश: पवनो विरिञ्चि: ।
आदित्यविश्वे वसवोऽथ साध्या
मरुद्गणा रुद्रगणा: ससिद्धा: ॥ १४ ॥
अन्ये च ये विश्वसृजोऽमरेशा
भृग्वादयोऽस्पृष्टरजस्तमस्का: ।
यस्येहितं न विदु: स्पृष्टमाया:
सत्त्वप्रधाना अपि किं ततोऽन्ये ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं यमराज, स्वर्ग के राजा इंद्र, निर्ऋति, वरुण, चन्द्र, अग्नि, शिव, पवन, ब्रह्मा, सूर्य, विश्वासु, आठों वरुण, साध्यगण, मरुतगण, सिद्धगण और मरीचि तथा अन्य ऋषिगण, जो ब्रह्मांड के विभागीय कार्यों का संचालन करते हैं, बृहस्पति आदि सर्वोत्तम देवगण और भृगु आदि मुनिगण - ये सभी प्रकृति के दो निम्न गुणों - रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव से निश्चित रूप से मुक्त होते हैं। फिर भी, यद्यपि हम सतोगुणी हैं, तो भी हम परम पुरुषोत्तम भगवान के कार्यों को नहीं समझ सकते। तो फिर दूसरों के बारे में क्या कहा जाए जो भ्रम के अधीन होने से ईश्वर को जानने के लिए केवल मानसिक ऊहापोह करते हैं?
 
 
 
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