श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 2: विष्णुदूतों द्वारा अजामिल का उद्धार  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  6.2.47-48 
 
 
य एतं परमं गुह्यमितिहासमघापहम् ।
श‍ृणुयाच्छ्रद्धया युक्तो यश्च भक्त्यानुकीर्तयेत् ॥ ४७ ॥
न वै स नरकं याति नेक्षितो यमकिङ्करै: ।
यद्यप्यमङ्गलो मर्त्यो विष्णुलोके महीयते ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  इस अति गोपनीय ऐतिहासिक कथा में सभी पापों को नष्ट करने की शक्ति है, इसलिए जो कोई भी इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ सुनता या सुनाता है, वह नरक नहीं जाता, चाहे उसका भौतिक शरीर हो या वह कितना ही पापी क्यों न रहा हो। यमराज के आदेशों का पालन करने वाले यमदूत उसे देखने के लिए भी उसके पास नहीं जाते। शरीर त्यागने के बाद वह भगवान के धाम में लौटता है जहाँ उसका आदरपूर्वक स्वागत किया जाता है और पूजा की जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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