श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 19: पुंसवन व्रत का अनुष्ठान  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  6.19.19-20 
 
 
विष्णोर्व्रतमिदं बिभ्रन्न विहन्यात्कथञ्चन ।
विप्रान् स्त्रियो वीरवती: स्रग्गन्धबलिमण्डनै: ।
अर्चेदहरहर्भक्त्या देवं नियममास्थिता ॥ १९ ॥
उद्वास्य देवं स्वे धाम्नि तन्निवेदितमग्रत: ।
अद्यादात्मविशुद्ध्यर्थं सर्वकामसमृद्धये ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य को इस भक्तिपूर्ण विष्णु-व्रत का पालन करना चाहिए और किसी अन्य कार्य में व्यस्त होने के लिए इससे विचलित नहीं होना चाहिए। उसे चाहिए कि प्रतिदिन ब्राह्मणों और उन विवाहित गृहणियों की पूजा करे जो अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहती हैं। पूजा में उन्हें बचा हुआ प्रसाद, फूलों की माला, चंदन का लेप और आभूषण अर्पित करना चाहिए। पत्नी को विधि-विधानों के अनुसार अत्यंत भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद भगवान विष्णु को शयन कराना चाहिए और उसके बाद प्रसाद लेना चाहिए। इस प्रकार पति और पत्नी पवित्र हो जाएँगे और उनकी सभी इच्छाएँ पूरी होंगी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.