श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 63
 
 
श्लोक  6.18.63 
 
 
तमूचु: पाट्यमानास्ते सर्वे प्राञ्जलयो नृप ।
किं न इन्द्र जिघांससि भ्रातरो मरुतस्तव ॥ ६३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन! हम बहुत दुखी हैं, इसलिए हाथ जोड़कर इंद्र से निवेदन करते हैं - "हे इंद्र! हम तुम्हारे भाई मरुद्गण हैं। तुम हमें क्यों मार रहे हो?"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.