वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य
»
अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत
»
श्लोक 59
श्लोक
6.18.59
नाध्यगच्छद्व्रतच्छिद्रं तत्परोऽथ महीपते ।
चिन्तां तीव्रां गत: शक्र: केन मे स्याच्छिवं त्विह ॥ ५९ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
हे जगदम्बा! जब इंद्र को कोई दोष नहीं मिला, तब उसने सोचा, अब मेरा भला कैसे होगा? इस प्रकार वह अत्यंत चिंतित हो गया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.