नाप्सु स्नायान्न कुप्येत न सम्भाषेत दुर्जनै: ।
न वसीताधौतवास: स्रजं च विधृतां क्वचित् ॥ ४८ ॥
अनुवाद
कश्यप मुनि ने आगे कहा—हे कल्याणी! नहाते समय पानी में कभी न घुसे, कभी क्रोध न करे और न दुष्ट लोगों से कभी बात करें या साथ रखें। कभी भी बिना धुले वस्त्र न पहने और पहले धारण की गई माला को कभी न पहने।