श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  6.18.48 
 
 
नाप्सु स्‍नायान्न कुप्येत न सम्भाषेत दुर्जनै: ।
न वसीताधौतवास: स्रजं च विधृतां क्‍वचित् ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  कश्यप मुनि ने आगे कहा—हे कल्याणी! नहाते समय पानी में कभी न घुसे, कभी क्रोध न करे और न दुष्ट लोगों से कभी बात करें या साथ रखें। कभी भी बिना धुले वस्त्र न पहने और पहले धारण की गई माला को कभी न पहने।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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