श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  6.18.45 
 
 
श्रीकश्यप उवाच
पुत्रस्ते भविता भद्रे इन्द्रहादेवबान्धव: ।
संवत्सरं व्रतमिदं यद्यञ्जो धारयिष्यसि ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  कश्यप मुनि ने कहा, हे कल्याणी! यदि तुम इस व्रत को लेकर मेरे उपदेशों का कम से कम एक वर्ष तक पालन करोगी तो निश्चित तौर पर तुम्हें ऐसा पुत्र प्राप्त होगा जो इन्द्र का वध कर सकेगा। किन्तु यदि तुम वैष्णव नियमों का पालन करने वाले इस व्रत से थोड़ा सा भी विचलित हो गईं तो तुम्हें जो पुत्र प्राप्त होगा वह इन्द्र का अनुयायी होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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