श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 17: माता पार्वती द्वारा चित्रकेतु को शाप  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  6.17.36 
 
 
श्रीशुक उवाच
इति श्रुत्वा भगवत: शिवस्योमाभिभाषितम् ।
बभूव शान्तधी राजन् देवी विगतविस्मया ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव जी ने कहा – हे राजन, अपने पति देव के इस वचन को सुनकर देवी उमा (शिव की पत्नी) कि महाराजा चित्रकेतु के व्यवहार से जो विस्मय उत्पन्न हुआ था वह मिट गया और उनकी बुद्धि स्थिर हो गयी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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