नारायणपरा: सर्वे न कुतश्चन बिभ्यति ।
स्वर्गापवर्गनरकेष्वपि तुल्यार्थदर्शिन: ॥ २८ ॥
अनुवाद
भगवान नारायण की भक्ति में लीन भक्त जीवन की किसी भी परिस्थिति से नहीं डरते हैं। उनके लिए स्वर्ग, मुक्ति और नरक एक समान हैं क्योंकि वे केवल भगवान की सेवा में रुचि रखते हैं।