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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 17: माता पार्वती द्वारा चित्रकेतु को शाप
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श्लोक 27
श्लोक
6.17.27
श्रीरुद्र उवाच
दृष्टवत्यसि सुश्रोणि हरेरद्भुतकर्मण: ।
माहात्म्यं भृत्यभृत्यानां नि:स्पृहाणां महात्मनाम् ॥ २७ ॥
अनुवाद
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शिवजी ने कहा- हे सुंदरियों! तुमने वैष्णवों की महिमा देखी है? श्रीभगवान हरि के दासानुदास होकर वे महापुरुष होते हैं और किसी प्रकार के सांसारिक सुख में रुचि नहीं रखते।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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