श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 16: राजा चित्रकेतु की परमेश्वर से भेंट  »  श्लोक 65
 
 
श्लोक  6.16.65 
 
 
श्रीशुक उवाच
आश्वास्य भगवानित्थं चित्रकेतुं जगद्गुरु: ।
पश्यतस्तस्य विश्वात्मा ततश्चान्तर्दधे हरि: ॥ ६५ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा—इस प्रकार चित्रकेतु को उपदेश देकर और उसे सिद्धि का आश्वासन देकर जगद्गुरु, परमात्मा, भगवान् संकर्षण, चित्रकेतु के देखते-देखते ही उस स्थान से अंतर्धान हो गए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध छह के अंतर्गत सोलहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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