श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 14: राजा चित्रकेतु का शोक  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  6.14.58 
 
 
नाहं तनूज दद‍ृशे हतमङ्गला ते
मुग्धस्मितं मुदितवीक्षणमाननाब्जम् ।
किं वा गतोऽस्यपुनरन्वयमन्यलोकं
नीतोऽघृणेन न श‍ृणोमि कला गिरस्ते ॥ ५८ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रिय पुत्र! मैं निस्संदेह सबसे दुर्भाग्यशाली हूँ, क्योंकि अब मैं तुम्हारी कोमल मुस्कान नहीं देख सकती हूँ। तुमने हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली हैं; इसलिए मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि तुम्हें इस दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाया गया है, जहाँ से तुम वापस नहीं आ पाओगे। बेटा! मैं अब तुम्हारी सुखद वाणी नहीं सुन सकती हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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