नाहं तनूज ददृशे हतमङ्गला ते
मुग्धस्मितं मुदितवीक्षणमाननाब्जम् ।
किं वा गतोऽस्यपुनरन्वयमन्यलोकं
नीतोऽघृणेन न शृणोमि कला गिरस्ते ॥ ५८ ॥
अनुवाद
प्रिय पुत्र! मैं निस्संदेह सबसे दुर्भाग्यशाली हूँ, क्योंकि अब मैं तुम्हारी कोमल मुस्कान नहीं देख सकती हूँ। तुमने हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली हैं; इसलिए मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि तुम्हें इस दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाया गया है, जहाँ से तुम वापस नहीं आ पाओगे। बेटा! मैं अब तुम्हारी सुखद वाणी नहीं सुन सकती हूँ।