श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 14: राजा चित्रकेतु का शोक  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  6.14.53 
 
 
स्तनद्वयं कुङ्कुमपङ्कमण्डितं
निषिञ्चती साञ्जनबाष्पबिन्दुभि: ।
विकीर्य केशान् विगलत्स्रज: सुतं
शुशोच चित्रं कुररीव सुस्वरम् ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा के मरने के कारण रानी के सिर से महकता हुआ फूलों का ताज गिर पड़ा और उसकी लटें खुल गईं। आँखों से बहने वाले आँसुओं ने आँखों में लगा काजल धो डाला और उसकी कुमकुम लगी हुई छाती को भीगो दिया। पुत्र के विरह में विलाप करती हुई रानी का जोर-जोर से रोना कुररी पक्षी की मीठी बोली की तरह लग रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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