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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा
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अध्याय 8: भरत महाराज के चरित्र का वर्णन
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श्लोक 18
श्लोक
5.8.18
अपि च न वृक: सालावृकोऽन्यतमो वा नैकचर एकचरो वा भक्षयति ॥ १८ ॥
अनुवाद
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मुझे नहीं मालूम, लेकिन शायद किसी भेड़िये या कुत्ते या फिर एक साथ रहने वाले जंगली सुअरों ने या फिर अकेले घूमने वाले बाघ ने उस हिरण को खा लिया होगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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