द्रव्यदेशकालवय:श्रद्धर्त्विग्विविधोद्देशोपचितै: सर्वैरपि क्रतुभिर्यथोपदेशं शतकृत्व इयाज ॥ १७ ॥
अनुवाद
भगवान ऋषभदेव ने वेदों के निर्देशों के अनुसार सभी प्रकार के यज्ञों को सौ-सौ बार किया। इस प्रकार उन्होंने भगवान विष्णु को हर तरह से संतुष्ट किया। सभी अनुष्ठानों में सर्वोत्तम सामग्री का उपयोग किया गया। वे उचित समय पर और पवित्र स्थानों में युवा और श्रद्धालु पुरोहितों द्वारा किए गए। इस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा की गई और प्रसाद सभी देवताओं को अर्पित किया गया। इसलिए सभी समारोह और त्योहार सफल रहे।