श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 26: नारकीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  5.26.40 
 
 
भूद्वीपवर्षसरिदद्रिनभ:समुद्र-
पातालदिङ्‌नरकभागणलोकसंस्था ।
गीता मया तव नृपाद्भ‍ुतमीश्वरस्य
स्थूलं वपु: सकलजीवनिकायधाम ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, अभी मैंने इस पृथ्वी लोक, अन्य लोकों, उनके वर्षों, नदियों और पर्वतों का वर्णन किया है। मैंने आकाश, समुद्र, अधोलोक, दिशाओं, नरकों, ग्रहों और नक्षत्रों का भी वर्णन किया है। ये भगवान के विराट रूप के अंग हैं, जिन पर सभी जीवों का वास है। इस प्रकार, मैंने भगवान के बाह्य शरीर के अद्भुत विस्तार की व्याख्या की है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध पांच के अंतर्गत छब्बीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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