श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 26: नारकीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  5.26.37 
 
 
एवंविधा नरका यमालये सन्ति शतश: सहस्रशस्तेषु सर्वेषु च सर्व एवाधर्मवर्तिनो ये केचिदिहोदिता अनुदिताश्चावनिपते पर्यायेण विशन्ति तथैव धर्मानुवर्तिन इतरत्र इह तु पुनर्भवे त उभयशेषाभ्यां निविशन्ति ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन परीक्षित, यमलोक में इसी प्रकार के सैंकड़ों और हजारों नरक हैं। जिन पापी मनुष्यों का मैने वर्णन किया है — और जिनका वहाँ उल्लेख नहीं हुआ — वे सब अपने पापों की कोटि के अनुसार इन विभिन्न नरकों में प्रवेश करेंगे। किन्तु जो पुण्यात्मा हैं वे अन्य लोकों में अर्थात् देवताओं के लोकों में जाते हैं। तो भी, पुण्यात्मा और पापी दोनों ही अपने पुण्य-पाप के फलों के क्षय होने पर पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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