श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 26: नारकीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  5.26.35 
 
 
यस्त्विह वा अतिथीनभ्यागतान् वा गृहपतिरसकृदुपगतमन्युर्दिधक्षुरिव पापेन चक्षुषा निरीक्षते तस्य चापि निरये पापद‍ृष्टेरक्षिणी वज्रतुण्डा गृध्रा: कङ्ककाकवटादय: प्रसह्योरु- बलादुत्पाटयन्ति ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  कोई गृहस्थ अगर अपने घर आये मेहमान या आगंतुकों पर बुरी नज़र डालता है, मानो उन्हें भस्म कर देगा, तो उसे पर्यावर्तन नाम के नरक में डाल दिया जाता है जहाँ उसकी आँखें निकलती रहती हैं। इस नरक में कड़ी और नुकीली चोंच वाले गिद्ध, बगुले, कौवे और दूसरे पक्षी बसे हुए हैं जो उस पर निगाह रखते हैं और अचानक झपटकर बड़ी बेरहमी से उसके आँखें निकाल लेते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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