श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 26: नारकीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  5.26.34 
 
 
ये त्विह वा अन्धावटकुसूलगुहादिषु भूतानि निरुन्धन्ति तथामुत्र तेष्वेवोपवेश्य सगरेण वह्निना धूमेन निरुन्धन्ति ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  इस जीवन में जो लोग अन्य जीवों को अंधे कुओं, खत्तियों या पहाड़ों की गुफाओं में कैद रखते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद अवट-निरोधन नामक नरक में रखा जाता है। वहाँ उन्हें स्वयं अंधे कुओं में धकेल दिया जाता है, जहाँ जहरीले धुएं से उनका दम घुटता है और वे भयानक पीड़ाओं को झेलते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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