सूर्येण हि विभज्यन्ते दिश: खं द्यौर्मही भिदा ।
स्वर्गापवर्गौ नरका रसौकांसि च सर्वश: ॥ ४५ ॥
अनुवाद
हे राजन, सूर्यदेव और सूर्यलोक ब्रह्मांड की समस्त दिशाओं का विभाजन करते हैं। सूर्य की उपस्थिति के कारण ही हम समझ पाते हैं कि आकाश, स्वर्गलोक, यह संसार और पाताललोक क्या हैं। सूर्य की ही बदौलत हम यह जान पाते हैं कि भोग या मोक्ष के स्थान कौन-कौन से हैं और कौन से नरक और अतल आदि लोक हैं।