श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 20: ब्रह्माण्ड रचना का विश्लेषण  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  5.20.45 
 
 
सूर्येण हि विभज्यन्ते दिश: खं द्यौर्मही भिदा ।
स्वर्गापवर्गौ नरका रसौकांसि च सर्वश: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, सूर्यदेव और सूर्यलोक ब्रह्मांड की समस्त दिशाओं का विभाजन करते हैं। सूर्य की उपस्थिति के कारण ही हम समझ पाते हैं कि आकाश, स्वर्गलोक, यह संसार और पाताललोक क्या हैं। सूर्य की ही बदौलत हम यह जान पाते हैं कि भोग या मोक्ष के स्थान कौन-कौन से हैं और कौन से नरक और अतल आदि लोक हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.