श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 20: ब्रह्माण्ड रचना का विश्लेषण  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  5.20.33 
 
 
यत्तत्कर्ममयं लिङ्गं ब्रह्मलिङ्गं जनोऽर्चयेत् ।
एकान्तमद्वयं शान्तं तस्मै भगवते नम इति ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ब्रह्मा कर्ममय कहे जाते हैं, क्योंकि अनुष्ठानों को करके कोई भी उनका पद प्राप्त कर सकता है और उन्हीं से वैदिक अनुष्ठान-स्तुतियाँ प्रकट होती हैं। वो पूर्ण समर्पण के साथ भगवान की भक्ति करते हैं, अत: एक तरह से वो भगवान से अभिन्न हैं। फिर भी उनकी पूजा सर्वोच्च आराध्य के रूप में, परमेश्वर को सेवक मान कर ही की जानी चाहिए। इसलिए हम भगवान ब्रह्मा, वेदों के मूर्त स्वरूप को, प्रणाम करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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